
गुलों में ढूढती फिरती है बेकल
तितलियाँ खुशबुओं के ख़त पुराने
आज फिर अब्र के घूंघट से साधे
शिकारी चाँद ने सौ सौ निशाने
सोचता हूँ तेरी भीगी पलक पर
मैं रख दूं धूप के मौसम सुहाने
तेरी चाहत की चिंगारी रखी है
हमारे फूस के हैं, आशियाने
~ अवनीश कुमार
Oct 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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