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Thursday, April 2, 2015

गुलों में ढूढती फिरती है बेकल



गुलों में ढूढती फिरती है बेकल
तितलियाँ खुशबुओं के ख़त पुराने

आज फिर अब्र के घूंघट से साधे
शिकारी चाँद ने सौ सौ निशाने

सोचता हूँ तेरी भीगी पलक पर
मैं रख दूं धूप के मौसम सुहाने

तेरी चाहत की चिंगारी रखी है
हमारे फूस के हैं, आशियाने

~ अवनीश कुमार


  Oct 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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