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Wednesday, April 1, 2015

कब तक दिल की ख़ैर मनायें



कब तक दिल की ख़ैर मनायें कब तक राह दिखाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे

बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बर्खा बरसाओगे

अहद-ए-वफ़ा और तर्क-ए-मुहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है हमसे क्या मनवाओगे

किसने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली
ग़ेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे

'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर बसना भी लुट जाना भी
तुम उस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


  Nov 27, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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