शमअ कमरे में सहमी हुई है
खिडकियों से हवा झांकती है
जिस दरीचे पे बेलें सजी थीं
जाला मकड़ी वहां बुन रही है
सिर्फ चश्मा उतारा है मैंने
ज़हन में रौशनी हो गयी है
उम्र भर धूप में रहते रहते
ज़िन्दगी सांवली हो गयी है
~ राज़
Jan 2, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
खिडकियों से हवा झांकती है
जिस दरीचे पे बेलें सजी थीं
जाला मकड़ी वहां बुन रही है
सिर्फ चश्मा उतारा है मैंने
ज़हन में रौशनी हो गयी है
उम्र भर धूप में रहते रहते
ज़िन्दगी सांवली हो गयी है
~ राज़
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