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Monday, April 6, 2015

शमअ कमरे में सहमी हुई है

शमअ कमरे में सहमी हुई है
खिडकियों से हवा झांकती है

जिस दरीचे पे बेलें सजी थीं
जाला मकड़ी वहां बुन रही है

सिर्फ चश्मा उतारा है मैंने
ज़हन में रौशनी हो गयी है

उम्र भर धूप में रहते रहते
ज़िन्दगी सांवली हो गयी है

~ राज़


  Jan 2, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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