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Monday, April 6, 2015

सब-कुछ कुछ बदला सा है

दीपों के ही फूल खिले हैं,
हर घर आंगन मीत मिले हैं,
धरा पहन स्वर्णिम आभूषण, कैसा ये जलसा सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !

  Nov 9, 2010| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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