सारे जग की प्यास बुझाना, इतना आसाँ काम है क्या?
पानी को भी भाप में ढलकर बादल बनना पड़ता है
जलते दिए की लौ ही जाने उसकी आँखें जानें क्या?
कैसी कैसी झेल के बिपता , काजल बनना पड़ता है
'मीर' कोई था 'मीरा' कोई, लेकिन उनकी बात अलग
इश्क न करना, इश्क में प्यारे पागल बनना पड़ता है
निश्तर' साहब! हमसे पूछो, हमने जर्बें झेली हैं,
घायल मन की पीड़ समझने घायल बनना पड़ता है।
*ज़र्बें =चोटें
~ निश्तर ख़ानक़ाही
Jan 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
पानी को भी भाप में ढलकर बादल बनना पड़ता है
जलते दिए की लौ ही जाने उसकी आँखें जानें क्या?
कैसी कैसी झेल के बिपता , काजल बनना पड़ता है
'मीर' कोई था 'मीरा' कोई, लेकिन उनकी बात अलग
इश्क न करना, इश्क में प्यारे पागल बनना पड़ता है
निश्तर' साहब! हमसे पूछो, हमने जर्बें झेली हैं,
घायल मन की पीड़ समझने घायल बनना पड़ता है।
*ज़र्बें =चोटें
~ निश्तर ख़ानक़ाही
Jan 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
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