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Monday, April 6, 2015

ग़मे-आशिक़ी से कह दो

Shakeel Badayuni 

    Main Shakeel Dil Ka Hoon Tarjuman
    Keh Mohabbaton Ka Hoon Raazdaan
    Mujhe Fakhr Hai Meri Shayari
    Meri Zindagi Se Juda Nahin |

ग़मे-आशिक़ी से कह दो रहे–आम तक न पहुँचे ।
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे ।

मैं नज़र से पी रहा था कि ये दिल ने बददुआ दी –
तेरा हाथ ज़िंदगी-भर कभी जाम तक न पहुँचे ।

नयी सुबह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है,
ये सहर भी रफ़्ता-रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे ।

ये अदा-ए-बेनियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारिक,
मगर ऐसी बेरुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे ।

जो निक़ाबे-रुख उठी दी तो ये क़ैद भी लगा दी,
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे ।

~  शकील 'बदायूँनी',

  Jan 7, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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