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Monday, April 6, 2015

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

Gulzar

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई |

आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर में जानता है कोई |

पक गया है शज़र पे फल शायद,
फ़िर से पत्थर उछालता है कोई !

फ़िर नज़र में लहू के छींटे हैं,
तुम को शायद मुगालता है कोई !

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हम को पुकारता है कोई !

~  गुलज़ार

  Dec 15, 2010| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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