
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई |
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर में जानता है कोई |
पक गया है शज़र पे फल शायद,
फ़िर से पत्थर उछालता है कोई !
फ़िर नज़र में लहू के छींटे हैं,
तुम को शायद मुगालता है कोई !
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हम को पुकारता है कोई !
~ गुलज़ार
Dec 15, 2010| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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