कभी चाँद तारों के रूप में, कभी जुगनुओं की कतार में
वो तमाम भेष बदल बदल के तमाम रात मिला मुझे
सरे-आम तुझ पे बरस पढ़ें ये महकते फूलों की बारिशें
मैं मुहब्बतों का दरख्त हूँ तू बढ़ा के हाथ हिला मुझे
~ अशोक मिजाज़
Jan 19, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
वो तमाम भेष बदल बदल के तमाम रात मिला मुझे
सरे-आम तुझ पे बरस पढ़ें ये महकते फूलों की बारिशें
मैं मुहब्बतों का दरख्त हूँ तू बढ़ा के हाथ हिला मुझे
~ अशोक मिजाज़
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