खाली-वाली सूना-वूना, दिन-विन डूबा कितनी बार
तन्हा-मन्हा गुज़रा चंदा, आधा पूरा कितनी बार.
करते सब है अच्छी-बच्छी, बातें दुनियादारी की
हमने सुना जुबाँ से अपनी, एक ही किस्सा कितनी बार.
कैसे घूम ली दुनिया तुमने, टेढी - मेढ़ी सडको से
हमने खुद से खुद के घर का, रस्ता पूछा कितनी बार.
अब तक दर्द बराबर है, वो जाने कैसी ठोकर थी
पहले भी वरना दिल मेरा, टूटा-फूटा कितनी बार.
क्या परवा है जो तुम भी, हमसे रूठे-वूठे से हो
ऐसे तो मैं जाने खुद से, रूठा-बूठा कितनी बार.
अब तो होती है चिढ़-विढ़, हमको इस समझाइश से
वैसे भी कब तक कोई सीखे, एक सलीका कितनी बार.
- प्रदीप तिवारी
Jan 18, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
तन्हा-मन्हा गुज़रा चंदा, आधा पूरा कितनी बार.
करते सब है अच्छी-बच्छी, बातें दुनियादारी की
हमने सुना जुबाँ से अपनी, एक ही किस्सा कितनी बार.
कैसे घूम ली दुनिया तुमने, टेढी - मेढ़ी सडको से
हमने खुद से खुद के घर का, रस्ता पूछा कितनी बार.
अब तक दर्द बराबर है, वो जाने कैसी ठोकर थी
पहले भी वरना दिल मेरा, टूटा-फूटा कितनी बार.
क्या परवा है जो तुम भी, हमसे रूठे-वूठे से हो
ऐसे तो मैं जाने खुद से, रूठा-बूठा कितनी बार.
अब तो होती है चिढ़-विढ़, हमको इस समझाइश से
वैसे भी कब तक कोई सीखे, एक सलीका कितनी बार.
- प्रदीप तिवारी
Jan 18, 2012| e-kavya.blogspot.com
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