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Monday, April 6, 2015

आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!


आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!
चिर अतीत में ’आज’ समाया,
उस दिन का सब साज समाया,
किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे!
आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!

लहरों में मचला यौवन था,
तुम थीं, मैं था, जग निर्जन था,
सागर में हम कूद पड़े थे भूल जगत के कूल किनारे!
आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’

साँसों में अटका जीवन है,
जीवन में एकाकीपन है,सागर की बस याद दिलाते नयनों में दो जल-कण खारे!
आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’


 ~ हरिवंशराय बच्चन

  Jan 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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