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Tuesday, April 7, 2015

पुष्प की अभिलाषा




चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

~ माखनलाल चतुर्वेदी

  Mar 15, 2011| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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