
सूखी
गुलदस्ते सी
प्यार की नदी
व्यक्ति
संवेग सब
मशीन हो गए
जीवन के
सूत्र
सरेआम खो गए
और कुछ न कर पाई
यह नई सदी
वर्तमान ने
बदले
ऐसे कुछ पैंतरे
आशा
विश्वास
सभी पात सो झरे
सपनों की
सर्द लाश
पीठ पर लदी।
~ इसाक अश्क
Dec 9, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment