Disable Copy Text

Sunday, April 5, 2015

ये शीशे के सपने, ये रिश्तों के धागे

 
ये शीशे के सपने, ये रिश्तों के धागे..
किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जाएँ..
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जाएँ

अजब दिल की वादी,अजब दिल की बस्ती
हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का
लगाए हैं हमने भी सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का

मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे
ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे

जिन्हें दिल से चाहा, जिन्हें दिल से पूजा
नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी
शिकायत नहीं है कोई ज़िंदगी से....

~ सुदर्शन फ़ाकिर

   Apr 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment