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Tuesday, April 7, 2015

मै ये सोच कर उस के दर से उठा था

Kaifi Azmi

मै ये सोच कर उस के दर से उठा था
वो रोक ले गी, मना ले गी मुझ को
हवाओं में लहराता आता था दामन
कि दामन पकड़ कर बिठा लेगी मुझ को
क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
कि आवाज़ दे कर बुला ले गी मुझ को !

मगर उस ने रोका, न मुझ को मनाया
न दामन ही पकड़ा न मुझ को बिठाया
न आवाज़ ही दी न मुझको बुलाया
मै आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक कि उस से जुदा हो गया मै
यहाँ तक कि उस से जुदा हो गया मै.......!

क़ैफी आज़मी

  Jan 18, 2011| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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