
परवाज में कुछ है, कोई पर तोल रहे है,
उड़ जायेंगे पंछी जो यहाँ बोल रहे है |
करते है तुझे याद, जो ले-ले के तेरा नाम,
हमराज़ ही सब राज़ तेरा खोल रहे है |
साथी तो पहुच भी गए मंजिल पे कभी के,
हम है कि अभी शाख पे पर तोल रहे है |
खिल-खिल के कहा गुंचो ने इक रोज़ चमन में,
हम उम्दा-ए-हस्ती कि गिरह खोल रहे है |
ये अहद था फिर उनसे न बोलेंगे कभी हम,
मजबूर है इस दिल से मगर बोल रहे है |
~ बिस्मिल भरतपुरी
Dec 6, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment