कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?
क्या तुम लाई हो चितवन में,
क्या तुम लाई हो चुंबन में,
अपनी कर में क्या तुम लाई,
क्या तुम लाई अपने मन में,
क्या तुम नूतन लाई जो मैं
फ़िर से बंधन झेलूँ?
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?
खेल चुका मिट्टी के घर से,
खेल चुका मैं सिंधु लहर से,
नभ के सूनेपन से खेला,
खेला झंझा के झर-झर से;
तुममें आग नहीं तब क्या,
संग तुम्हारे खेलूँ?
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?
खेल चुका मैं सिंधु लहर से,
नभ के सूनेपन से खेला,
खेला झंझा के झर-झर से;
तुममें आग नहीं तब क्या,
संग तुम्हारे खेलूँ?
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?
~ हरिवंशराय बच्चन
Nov 16, 2010| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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