कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं, तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता
तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो उसकी वहाँ नहीं मिलता
*ख़ुलूस=स्नेह,पवित्रता
कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता
* बीनाई=रोशनी
~ निदा फ़ाज़ली,
April 12, 2013|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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