Disable Copy Text

Saturday, November 29, 2014

तस्कीन न हो जिस से



तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
*तस्कीन=तसल्ली

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ बदल डालो
*आगाज़=शुरुआत

पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो
*पुरसोज़=दु:खी

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वो ही खेलो, अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त! करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
गर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो
*परवाज़= उड़ान

~ मोहम्मद इक़बाल

 
   March 22, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

No comments:

Post a Comment