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Saturday, November 29, 2014

पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके



ओ प्रिया
पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके।

इस फूली संझा के तट पर,
आ बैठें बिल्कुल सट-सटकर,
दृष्टि कहे जो
उसे सुनें तो
अर्थ खिलेंगे नए आज गुमसुम के।

किरन बनाती तुझे सुहागिन,
आँखें खोल अरी बैरागिन,
इत-उत अहरह
अहरह इत-उत
लट ले तेरी मदिर हवा के ठुमके।

~ ओम प्रभाकर


   March 12, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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