सिलसिला तोड़ दिया उस ने
तो ये सदायें कैसी
अब जो मिलना ही नहीं
फिर ये वफाएँ कैसी
मैंने चाहा था
सब शिकवे गिले दूर करूँ
उस ने ज़हमत ही न की
सुनने की, तो ये आहें कैसी
ले लो वापिस ये आँसू
ये तड़प, और ये यादें सारी
नहीं कोई जुर्म मेरा
तो फिर ये सजाएँ कैसी
~ नामालूम
May 17, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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