Disable Copy Text

Saturday, November 29, 2014

ओ! बासंती पवन

http://3.bp.blogspot.com/_g6Q_BiZp7pY/TUqUxQXgh_I/AAAAAAAAAyo/e_kjaRmyrEg/s640/bees.jpg

जब भी अरमानों ने
पलकें खोली हैं.
जबरन घुस आया
कोई डर अनजाना.
फाग में आग की लपट
दिख रही गली गली
ओ! बासंती पवन झुलस
तुम मत जाना ।।

जाने कैसी हवा चली
नन्दन-वन में.
शीतलता सुगन्ध ग़ायब
है चन्दन में.
सुधा-कलश की संग्या
जिसको मिली हुई.

विष ही विष है व्याप्त
उसी अंतर्मन में

सहमी सहमी कली-
कली अब गुलशन में
माली का है सैय्यादों
से य़ाराना.
ओ! बासंती पवन
झुलस तुम मत जाना.
 

~ काशीनाथ, प्रयाग
 
   March 22, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

No comments:

Post a Comment