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Saturday, November 29, 2014

उँगली पर गिनना पड़ता है




उँगली पर गिनना पड़ता है
किससे बात करें!

पढ़ने-लिखने वाले सब हैं सोचने वाले गिने-चुने
उद्धरणों से भरे रिसाले दिल के हवाले गिने-चुने
अर्थ कभी होते होंगे शब्दों के
अब बस क़ीमत है
सबके सब गुलदस्तों जैसे ज़हर के प्याले गिने-चुने

भाड़ में जाएँ कबीर निराला
क्यों कवि ही हो ग़ैरतवाला
अपने में फूला है आग बबूला है हर कोई यहाँ
हर कोई तिरछा पड़ता है
किससे बात करें।

~ दीनू कश्यप


  April 18, 2013| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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