क्षण-भंगुरता के इस क्षण में, जीवन की गति जीवन का स्वर
दो सौ वर्षों की आयु में, क्या अधिक सुखी हो जाता नर ?
इस अमर धारा के आगे, बहने के हित ये सब नश्वर,
सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निबल मानव के घर-घर
ज्योतित हों मुख नव आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर ।
~ गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
Apr 10, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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