गो चुकी उम्र है मेरी ढ़ल
आज भी हूँ वही जो था कल
तुमने आँसू जिसे कह दिया
मन की गंगा का है, गंगा-
जल.
एक पल के लिये सौ जनम
सौ जनम का है फल एक
पल.
पी के अमृत-कलश तुम तृषित.
तृप्त मैं पान करके
गरल.
हूँ मनुज आस्था मेरी डग
देव हो तुम किये जाओ
छल.
~ काशी नाथ, प्रयाग
March 15, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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