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Friday, November 28, 2014

ख़ुद अपने लिए बैठ के



ख़ुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन

भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल मैं
दुनिया ने दिया वक्त तो लिखेंगे किसी दिन

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब कर देखेंगे किसी दिन

खुशबू से भरी शाम में जुगनू के कलम से
इक नज़्म तेरे वास्ते लिखेंगे किसी दिन

सोयेगे तेरी आँख की ख़लवत मैं किसी रात
साये में तेरी ज़ुल्फ के जागेंगे किसी दिन
*ख़लवत=एकांत

खुशबू की तरह मिस्ल-ए-सबा ख़्वाबनुमा से
गलियों से तेरे शहर की गुजरेंगे किसी दिन
*मिस्ल-ए-सबा=हवा की तरह

अमज़द है यही अब कि कफ़न बाँध के सर पर
उस सहर ए सितमगर में जाएँगे किसी दिन

~ अमज़द इस्लाम 'अमज़द'


   May 3, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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