ख़ुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन
भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल मैं
दुनिया ने दिया वक्त तो लिखेंगे किसी दिन
जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब कर देखेंगे किसी दिन
खुशबू से भरी शाम में जुगनू के कलम से
इक नज़्म तेरे वास्ते लिखेंगे किसी दिन
सोयेगे तेरी आँख की ख़लवत मैं किसी रात
साये में तेरी ज़ुल्फ के जागेंगे किसी दिन
*ख़लवत=एकांत
खुशबू की तरह मिस्ल-ए-सबा ख़्वाबनुमा से
गलियों से तेरे शहर की गुजरेंगे किसी दिन
*मिस्ल-ए-सबा=हवा की तरह
अमज़द है यही अब कि कफ़न बाँध के सर पर
उस सहर ए सितमगर में जाएँगे किसी दिन
~ अमज़द इस्लाम 'अमज़द'
May 3, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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