दोनों जहाँ तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब्-ए-गम गुज़ार के
*शब्-ए-गम=उदासी की रात
वीरां है मैकदा, ख़म-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए के रूठ गए दिन बहार के
वीरां=खाली, मैकदा=शराब घर, ख़म-ओ-सागर= प्याला और शराब
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब है गम रोज़गार के
*दिलफरेब=दिल को धोखा देने वाले, रोज़गार=नौकरी वगैरह...
इक फुर्सत-ए-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
*फुर्सत-ए-गुनाह=इश्क़/
भूले से मुस्कुरा तो दिए, थे वो आज 'फैज़'
मत पूछ वलवले दिल-ए-नाकर्दाकार के
*वलवले=जोश, दिल-ए-नाकर्दाकार=संवेदनाशू
~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
March 20, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
No comments:
Post a Comment