शमशाद बेगम की याद में...!
छोड़ बाबुल का घर, मोहे पी के नगर
आज जाना पड़ा
याद मयके की तन से भुलाये चली
प्रीत साजन की मन में बसाये चली
याद कर के ये घर, रोईं आँखें मगर
मुस्कुराना पड़ा, आज जाना पड़ा
संग सखियों के बचपन बिताती थी मैं
ब्याह गुड़ियों का हँस-हँस रचाती थी मैं
सब से मुँह मोड़ कर, क्या बताऊँ किधर
दिल लगाना पड़ा, आज जाना पड़ा
पहन उलफ़त का गहना दुल्हन मैं बनी
डोला आया पिया का सखी मैं चली
ये था झूठा नगर, इसलिये छोड़ कर
मोहे जाना पड़ा, आज जाना पड़ा
~ शकील 'बदायूँनी'
May 2, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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