किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,
झूम कर आई घटा, टूट के बरसा पानी
कोई मतवाली घटा थी के जवानी की उमंग,
जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी
टिकटिकी बांधे वो फिरते है में इस फ़िक्र में हूँ,
कही खाने लगे ना चक्कर ये गहरा पानी
बात करने में वो उन आँखों से अमृत टपका,
आरजू देखते ही मुहँ में भर आया पानी
रो लिया फूट के, सीने में जलन अब क्यूँ हो,
आग पिघला के निकला है ये जलता पानी
ये पसीना वही आंसूं हैं, जो पी जाते थे तुम,
"आरजू "लो वो खुला भेद वो फुटा पानी
~ आरज़ू लखनवी
May 22, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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