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Saturday, November 29, 2014

चाँदनी चुप-चाप सारी रात



चाँदनी चुप-चाप सारी रात
सूने आँगन में
जाल रचती रही।

मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम
आँच पर तँचती रही।

व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
मनश्चित्रों से परचती रही।

मैं दम साधे रहा
मन में अलक्षित
आँधी मचती रही:

प्रातः बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़कर वासना का
रूप लेने से बचती रही।

~ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"


   March 17, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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