इतना पास आके फिर ये झिझकना कैसा
साथ निकले हैं तो फिर राह में थकना कैसा?
मेरे आंगन को भी खुशबू का कोई झोंका दे
सूने जंगल में ये फूलों का महकना कैसा?
रौशनी दी है तो सूरज की तरह दे मुझको
जुगनुओं की तरह थोड़ा सा चमकना कैसा?
मेरी पलकें मेरा आंचल मेरा तकिया छू लो
आंसुओं इस तरह आंखो में खटकना कैसा?
~ नसीम निकहत
April 4, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
No comments:
Post a Comment