मेरे युवा-आम में नया बौर आया है
खुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है
आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी
छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी
चमकीले, मँजे अंग
चेहरा हँसता मयंक
खनकदार स्वर में तेज गमक-ताल फागुनी
मेरा जिस्म फिर से नया रूप धर आया है
ताजगी बहुत है क्योंकि तुमने सजाया है
अन्धी थी दुनिया या मिट्टी भर अन्धकार
उम्र हो गई थी एक लगातार इन्तजार
जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्यार
हो गया उजेला-सा रोओं के आर-पार
एक दीप ने दूसरे को चमकाया है
रौशनी के लिए दीप तुमने जलाया है
कम न हुई, मरती रही केसर हर साँस से
हार गया वक्त मन की सतरंगी आँच से
कामनाएँ जीतीं जरा-मरण-विनाश से
मिल गया हरेक सत्य प्यार की तलाश से
थोड़े ही में मैंने सब कुछ भर पाया है
तुम पर वसन्त क्योंकि वैसा ही छाया है
~ गिरिजा कुमार माथुर
March 31, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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