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Friday, November 28, 2014

कभी-कभी तो वो इतनी रसाई

 

कभी-कभी तो वो इतनी रसाई देता है
कि सोचता है तो, मुझको सुनायी देता है
*रसाई=पहुँच

कभी वो हिज्र के मौसम में दिल में खिलता है
कभी विसाल की सूरत जुदाई देता है
*हिज्र=बिछोह; विसाल=मिलन

न जाने देख लिया क्या, हमारी आँखों ने
कि अब तो एक ही मंज़र दिखायी देता है

अजीब बात है, वो एक-सी ख़ताओं पर
किसी को कै़द, किसी को रिहाई देता है

अगर वो नाम तुम्हारा नहीं, तो किस का है ?
हवा के शोर में अक्सर सुनायी देता है

चलो वो झूट था, जो कुछ सुना था कानों ने
तो फिर इन आँखों को, ये क्या दिखायी देता है

~ मंजूर हाशमी


   May 2, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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