ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे।
हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं
मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे।
दिल धड़कता नहीं सुलगता है
वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे
*आबला=छाला, फफोला
लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ
क़त्ल होने का हौसला है मुझे।
*लबकुशा=बात कहना
कौन जाने कि चाहतों में ‘फ़राज़’
क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे।
~ 'फ़राज़’
April 17, 2013|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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