अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ
मेरा लफ्ज़-लफ्ज़ हो आइना, तुझे आइने में उतार लूँ
मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब् का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
कई अजनबी तेरी राह के, मेरे पास से यूँ गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई, तेरा नाम ले के पुकार लूँ
~ बशीर बद्र
March 27, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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