पैशानियों पे लिखे मुकद्दर नहीं मिले
दसतार क्या मिलेंगे जहां सर नहीं मिले
*दसतार=पगड़ी
आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है
मग़रिब के बाद हम भी तो, घर नहीं मिले
कल आइनों का जश्न हुआ था तमाम रात
अंधे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले
मैं चाहता था खुद से मुलाकात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले
परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले
~ राहत 'इंदोरी'
April 7, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
जब उठ चुके हैं हाथ, तो कुछ माँग ख़ुदा से
ReplyDeleteमुमकिन है कल दुआयें सभी बेअसर मिलें ।
~ Kashi Nath · April 6, 2013 at 8:59pm