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Saturday, November 29, 2014

पैशानियों पे लिखे मुकद्दर



पैशानियों पे लिखे मुकद्दर नहीं मिले
दसतार क्या मिलेंगे जहां सर नहीं मिले
*दसतार=पगड़ी

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है
मग़रिब के बाद हम भी तो, घर नहीं मिले

कल आइनों का जश्न हुआ था तमाम रात
अंधे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले

मैं चाहता था खुद से मुलाकात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले

परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले

~ राहत 'इंदोरी'


   April 7, 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

1 comment:

  1. जब उठ चुके हैं हाथ, तो कुछ माँग ख़ुदा से
    मुमकिन है कल दुआयें सभी बेअसर मिलें ।

    ~ Kashi Nath · April 6, 2013 at 8:59pm

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