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Saturday, November 29, 2014

आईने से कब तलक तुम



आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएंगे जब-जब अंधेरे, ख़ुद को तनहा पाओगे

हर हसीं मंज़र से यारो फ़ासले क़ायम रखो
चांद गर धरती पे उतरा, देख कर डर जाओगे

आरज़ू, अरमान, ख़्वाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा
दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोख़े खाओगे

आजकल फूलों के बदले संग की सौग़ात है
घर से निकलोगे सलामत, जख्म़ लेकर आओगे।

ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे

~ दिनेश ठाकुर


   April 1, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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