मैं हूँ बिखरा हुआ दीवार कहीं दर हूँ मैं
तू जो आ जाय मेरे दिल में तो इक घर हूँ मैं
कल मेरे साथ जो चलते हुए घबराता था
आज कहता है तिरे कद के बराबर हूँ मैं
इससे मैं बिछडू तो पल भर में फना हो जाऊं
मैं तो खुशबू हूँ इसी फूल के अंदर हूँ मैं
~ मेहर गेरा
March 23, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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