इक चमेली के मंडवे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़े वफ़ा
प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन
*हर्फ़े-वफ़ा='वफ़ा' शब्द
ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा रू ताज़ा दम फूल पिछले पहर
ठंडी-ठंडी सबक रौ चमन की हवा
सर्फ़े मातम हुई
काली-काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूरो जुल्मात में
*रुख़सार=गाल
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें
अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारागर
तेरी जन्बील में
नुस्ख़-ए-कीमियाए मुहब्बत भी है
कुछ इलाज व मदावा-ए-उल्फ़त भी है ?
इक चम्बेली के मड़वे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
*चारागर=वैद्य; अज़ अज़ल ता अबद=पहले से दुनिया के अंतिम दिन तक; जन्बील=थैला;
नुस्ख़-ए-कीमियाए=दीर्घायु होने के लिये 'अमृत' के निर्माण का प्रयत्न; मदावा=इलाज
~ मख़्दूम मोहिउद्दीन
April 28, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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