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Saturday, November 29, 2014

इक चमेली के मंडवे तले




इक चमेली के मंडवे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़े वफ़ा
प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन
*हर्फ़े-वफ़ा='वफ़ा' शब्द

ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा रू ताज़ा दम फूल पिछले पहर

ठंडी-ठंडी सबक रौ चमन की हवा
सर्फ़े मातम हुई
काली-काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूरो जुल्मात में
*रुख़सार=गाल

मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें

अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारागर
तेरी जन्बील में
नुस्ख़-ए-कीमियाए मुहब्बत भी है

कुछ इलाज व मदावा-ए-उल्फ़त भी है ?
इक चम्बेली के मड़वे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन


*चारागर=वैद्य; अज़ अज़ल ता अबद=पहले से दुनिया के अंतिम दिन तक; जन्बील=थैला; 

नुस्ख़-ए-कीमियाए=दीर्घायु होने के लिये 'अमृत' के निर्माण का प्रयत्न; मदावा=इलाज

~
मख़्दूम मोहिउद्दीन

   April 28, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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