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Wednesday, November 26, 2014

रिन्द-ए-ख़राब हाल को



रिन्द-ए-ख़राब हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू
तुझको पराई क्या पड़ी अपनी निबेड़ तू
*निबेड़=सम्भाल

नाखू़न खु़दा ना दे तुझे ऐ पंज-ए-जुनून
देगा तमाम अक़्ल के बखिये उधेड़ तू

यह तंग-नाये-देह्र नहीं मंज़िल-ए-फ़राग
गाफ़िल! ना पाँव हिर्स के फैला, सुकेड़ तू
*दह्र=समय; मंज़िल-ए-फ़राग=मुक्ति की मंज़िल; हिर्स=लालच

उल्फ़त का गर है नख़्ल तो सरसब्ज़ होयेगा
सौ बार जड़ से फ़ेंक दे उस को उखेड़ तू
*नख़्ल= पेड़

उम्र-ए-रवाँ का तौसन-ए-चालाक इसलिये
तुझ को दिया कि जल्द करे याँ से एड़ तू
*तौसन= घोड़ा

आवारगी से कू-ए-मोहब्बत के हाथ उठा
अए ज़ौक! ये उठा न सकेगा खुखेड़ तू

~ ’जौक़’

   June 15, 2013 

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