याद आए फिर तुम्हारे केश,
मन-भुवन में, फिर अंधेरा हो गया
पर्वतों का तन
घटाओं ने छुआ,
घाटियों का ब्याह
फिर जल से हुआ,
याद आए फिर तुम्हारे नैन
देह-मछली, मन मछेरा हो गया।
प्राण-वन में
चन्दनी ज्वाला जली,
प्यास हिरनों की
पलाशों ने छली,
याद आए फिर तुम्हारे होंठ
भाल, सूरज का बसेरा हो गया।
दूर मंदिर में जगी
फिर रागिनी,
गन्ध की बहने लगी
मन्दाकिनी,
याद आए फिर तुम्हारे पाँव
प्रार्थना, हर गीत मेरा हो गया।
~ किशन सरोज
July 8, 2014
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