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Thursday, November 20, 2014

काज परे कछु और है

काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर ।।

काम पड़ने पर लोग कुछ दूसरी तरह व्यवहार करते हैं, और काम निकलते ही बदल जाते हैं, रहीमदास जी इस व्यवहार की तुलना शादी के समय सर पर लगाए हुये मौर यानी मुकुट से करते हैं जिसके बगैर शादी का होना संभव नहीं था, लेकिन विवाह सम्पन्न होते ही उस मुकुट को जो सर पर विराजमान था, नदी की धारा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

~ अब्दुल रहीम खानेखाना
   June 30, 2014

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