Disable Copy Text

Thursday, November 20, 2014

आ के वो मुझ खस्ता-जा पर



आ के वो मुझ खस्ता-जा पर यूँ करम फरमा गया
कोई दम बैठा, दिले-नाशाद को बहला गया
*खस्ता-जा=कमजोर; दिले-नाशाद=दुखी दिल

कौन ला सकता है ताब उसके रूख-ए-पुरनूर की
जिस तरफ से हो के गुजरा, बर्क सी लहरा गया
*ताब=ताकत; रूख-ए-पुरनूर=तेजस्वी मुख; बर्क=बिजली

आख भर कर देखना, कुछ खता ऐसी न थी
क्या खबर क्यों उनको मुझ पर, इतना गुस्सा आ गया
*खता=गलती

फिर गई एक और ही दुनिया नजर के सामने
बैठे-बैठे क्या बताऊ, क्या मुझ को याद आ गया

यूँ तो हम ने भी उसे देखा है लेकिन ए हमीद
जाने उसका कौन सा अंदाज तुझ को भा गया

~ हमीद जालंधरी

  July 20, 2014

No comments:

Post a Comment