वो क्या दिन थे जब इक लडकी मेरे ख़्वाबों में रहती थी
वह मेरे साथ रोती थी, वह मेरे साथ हँसती थी
लिपट जाती थी मुझसे वह, मैं जब घर में कदम रखता
कहीं भी जब मैं जाता तो, वह रास्ता रोक लेती थी
वो कहती थी मोहब्बत का कोइ मौसम नहीं होता
वो सुबहो-शाम मुहब्बत के सुनहरे ख्वाब बुनती थी
हम अक्सर चाँदनी रातों में सहरा की तरफ जाते
वो भीगी रेत पर मेरा और अपना नाम लिखती थी
वो दरिया के किनारे बैठ जाती थी कभी जाकर
मुझे उस वक्त सोहणी की तरह वो सच्ची लगती थी
बिछड़ जाने का उसके दिल में इक धड़का सा रहता था
वो मेरा हाथ गहरी नींद में भी थामे रखती थी
~ हसन अब्बासी
July 6, 2014
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