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Thursday, November 20, 2014

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते



ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते
*ख़ातिर=हृदय, मन

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
*शब-ए-वस्ल=मिलन की रात

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो, कि जलने नहीं देते
*फ़ानूस=छत से लटकता कंदील, जिसमें लौ के इर्दगिर्द शीशा होता है

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते
*अर्ज़-ए-तमन्ना=इच्छा ज़ाहिर करना

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
*लबरेज़=लबालब

गर्मी-ए-मोहब्बत में, वो है आह से माने
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते
*नफ़स=आत्मा

~ अकबर इलाहाबादी

   Jul 13, 2014

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