
तुम्हारे नील झील-से नैन
नीर निर्झर-से लहरे केश|
तुम्हारे तन का रेखाकार
वही कमनीय, कलामय हाथ
कि जिसने रुचिर तुम्हारा देश
रचा गिरि-ताल-माल के साथ,
करों में लतरों का लचकाव,
करतलों में फूलों का वास,
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश|
उधर झुकती अरुनारी साँझ,
इधर उठता पूनो का चाँद,
सरों, श्रॄंगों, झरनों पर फूट
पड़ा है किरनों का उन्माद,
तुम्हें अपनी बाहों में देख
नहीं कर पाता मैं अनुमान,
प्रकृति में तुम बिंबित चहुँ ओर
कि तुममें बिंबित प्रकृति अशेष।
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश|
~ हरिवंशराय बच्चन
Jul 12, 2014
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