एक रोज़ हम से कहने लगी एक गुलबदन
ऐनक से बाँध रक्खी है क्यों आप ने रसन
*रसन=डोरी, रस्सी
मिलता है क्या इसी से ये अन्दाज़-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न
हम ने कहा कि ऐसा नहीं है जनाब-ए-मन
बैठे जहाँ हसीन हों एक बज़्म-ए-आम में
रखते हैं हम निगाह को अपनी लगाम में
~ साग़र ख़य्यामी
Oct 25, 2014| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
ऐनक से बाँध रक्खी है क्यों आप ने रसन
*रसन=डोरी, रस्सी
मिलता है क्या इसी से ये अन्दाज़-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न
हम ने कहा कि ऐसा नहीं है जनाब-ए-मन
बैठे जहाँ हसीन हों एक बज़्म-ए-आम में
रखते हैं हम निगाह को अपनी लगाम में
~ साग़र ख़य्यामी
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