Disable Copy Text

Wednesday, November 19, 2014

इन्हीं ख़ुशगुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओ


इन्हीं ख़ुशगुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओ
वो जो चारागर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूँ दिखाओ
*चारागर=चिकित्सक; ख़ुशगुमानी=अच्छा पक्ष देखना

ये उदासियों के मौसम कहीं रायेगाँ न जायेँ
किसी ज़ख़्म को कुरेदो किसी दर्द को जगाओ
*रायेगाँ=व्यर्थ

वो कहानियाँ अधूरी जो न हो सकेंगी पूरी
उन्हें मैं भी क्यूँ सुनाऊँ उन्हें तुम भी क्यूँ सुनाओ

मेरे हमसफ़र पुराने मेरे अब भी मुन्तज़िर हैं
तुम्हें साथ छोड़ना है तो अभी से छोड़ जाओ
*मुन्तज़िर=आशान्वित

ये जुदाइयों के रस्ते बड़ी दूर तक गये हैं
जो गया वो फिर न लौटा मेरी बात मान जाओ

~ अहमद फ़राज़

   Oct 26, 2014

No comments:

Post a Comment