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Thursday, November 20, 2014

तुम आये हो न शब-ए-इन्तेज़ार गुज़री


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तुम आये हो न शब-ए-इन्तेज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर, बार बार गुज़री है
*शब-ए-इन्तज़ार=इन्तज़ार की रात; सहर=सुबह

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था,
वो बात उन को बहुत नागवार गुज़री है

जुनूं में जितनी भी गुज़री बकार गुज़री है
अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है
*बकार=काम काज के साथ

न गुल खिले हैं न उन से मिले, न मै पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है
*ग़ारत-ए-गुलचीं=फूलों कलियों की तबाही

चमन पे गारत-ए-गुलचीं से जाने क्या गुज़री
कफ़स से आज सबा बेक़रार गुज़री है
*कफ़स=पिंजरा; सबा=भोर की हवा

~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'

   Jul 11, 2014

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