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Friday, November 21, 2014

हृदय के तार झंकृत



अब नहीं होते
हृदय के तार झंकृत
सो गए हैं

राग भरकर रागिनी में
कोई अब गाता नहीं
पीठ दे बैठे हृदय दो
कोई समझाता नहीं
दुख किसी का, दुखी कोई
लोग ऐसे
खो गए हैं

सतह से उठते हुए पल
दृष्टि चौकस रख न पाए
पोटली उपलब्धियों की
छीन कोई ले न जाए
खेत, फसलें, बाड़ खाकर
सिपाही सब
सो गए हैं

साथ रहकर, साथ रहना
सीख जाते साथ ही तो
साथ दोनों हृदय होते
देह तो थी साथ ही तो
रेत गीली है अभी तक
नयन किसके
रो गए हैं

~ राजा अवस्थी

   Dec 25, 2014

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