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Wednesday, November 19, 2014

आँखें मुझे तलवे से मलने नहीं देते

आँखें मुझे तलवे से मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते
खातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं दते

किसी नाज़ से कहते हैं झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।

*शब-ए-वस्ल=मिलन की रात

~ अकबर इलाहाबादी

   August 31, 2014

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