आँखें मुझे तलवे से मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते
खातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं दते
किसी नाज़ से कहते हैं झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।
*शब-ए-वस्ल=मिलन की रात
~ अकबर इलाहाबादी
August 31, 2014
अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते
खातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं दते
किसी नाज़ से कहते हैं झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।
*शब-ए-वस्ल=मिलन की रात
~ अकबर इलाहाबादी
August 31, 2014
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